पिछले कई वर्षों से आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की आवश्यकता का मुद्दा उठाया जा रहा है|सरना धर्म कोड की आवश्यकता ये है कि भारत में होने वाली जनगणना के दौरान हर व्यक्ति के लिए जो फॉर्म भरा जाता है,उसमे अन्य सभी धर्मो की तरह के धर्म का उल्लेख करने के लिए विशेष कॉलम बनाया जाए|जैसे हिन्दू,मुस्लिम,क्रिश्चियन,जैन,सिख,बौद्ध धर्म के लोग अपने धर्म का उल्लेखन करते हैं,उसी प्रकार आदिवासी भी अपने धर्म ‘सरना धर्म’ का उल्लेखन कर सकें|

सरना धर्म कोड चर्चा में क्यों है-
झारखण्ड सरकार एवं झारखण्ड में कार्यरत राष्ट्रीय आदिवासी धर्म समन्वय समिति और अन्य अनुसूचित जनजाति संगठनों ने सरना धर्म को मान्यता प्रदान करने और 2021 की जनगणना में एक विशेष कोड के तौर पर शामिल करने हेतु केंद्र सरकार को पत्र भेजने का निर्णय लिया है|पिछले कई वर्षों से विभिन्न आदिवासी समूहों द्वारा झारखण्ड और अन्य स्थानों पर इस मांग को लेकर अनेक विरोध प्रदर्शन एवं चर्चाएँ हुई है|
सरना धर्म क्या है-
सरना धर्म,भारतीय धर्मिक परंपरा का एक प्राचीन धर्म एवं जीवन पध्दति है|जिसे छोटा नागपुर के पठारी भागों में रहने वाले कई आदिवासी लोग मानते है|इस धर्म को मानाने वाले आदिवासी झारखण्ड,बिहार,उत्तर प्रदेश,छत्तीसगढ़,पश्चिम बंगाल,त्रिपुरा,असम,महाराष्ट्र में पाए जाते है|भारत के बाहर भी जैसे नेपाल,भूटान,बांग्लादेश आदि स्थानों पर सरना धर्म को मानाने वाले आदिवासी पाए जाते हैं|विभिन्न राज्यों में सरना धर्म को अलग-अलग नामों से जाना जाता है|सरना धर्म को मानने वाले लोग वृक्ष,जड़ी-बूटी,पर्वत आदि प्राकृतिक संसाधनों की पूजा करते हैं|
सरना धर्म की बुनियाद प्रकृति की पूजा है|सरना धर्म को मानाने वाले लोग सभी जीवों को जो प्रकृति में निवास करते हैं,उन्हें ईश्वर का स्वरूप मानते हैं|ये लोग सूर्य,चाँद,धरती,पानी,आग,वायु,वृक्ष,जानवर को ईश्वर रूप मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं|
सरना धर्म को ‘आदि धर्म’ के नाम से भी जाना जाता है|यह धर्म विशेष रूप से कोल,हो,संथाल,उरांव,गोंड,भील,बुमिज,मुण्डा जैसे आदिवासियों द्वारा माना जाता है|सरना धर्म को मानने वाले आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं|
सरना धर्म की प्रमुख विशेषताएँ-(सरना धर्म कोड)
- सरना धर्म के लोग जल,वृक्ष,वन,पानी,भूमि,पहाड़ सहित प्रकृति की पूजा करते हैं|
- सरना धर्म के लोग वनों एवं वृक्षों की रक्षा करने में विश्वास करते हैं|
- सरना धर्म के लोग मूर्ति पूजा नहीं करते हैं|
- सरना धर्म के लोग वर्ण व्यवस्था में विश्वास नहीं करते हैं|
- सरना धर्म के लोग समूह में रहकर अपने जीवन का निर्वहन करते हैं|
सरना धर्म के प्रमुख त्योहार-
सरना धर्म के प्रमुख त्योहार हैं-
- सरहुल:यह त्योहार चैत्र महीने में मनाया जाता है|सरहुल त्योहार नए वर्ष का पर्व है|इसे वार्षिक त्योहार के रूप में मानते हैं|सरहुल का शाब्दिक अर्थ है“साल वृक्ष की पूजा”| यह त्योहार ‘धरती माता’ को समर्पित त्योहार है|
- करम पर्व:करम पर्व में करम देवता एवं वृक्ष की पूजा को समर्पित है|यह पर्व भद्र माह में मनाया जाता है|
- फगुआ:इस त्योहार के अनुसार सरना धर को मानने वाले लोग जंगली लकड़ियों और पत्तो को एकत्र कर इंधन के रूप में प्रयुक करना और जंगल की आग को कम करना|
क्यों आवश्यक है सरना धर्म कोड-
सरना धर्म के लोग हजारों सालों से प्रकृति की पूजा करते आ रहे हैं,इस धर्म के लोग पर्यावरण और प्रकृति में पाए जाने वाले जीवो की रक्षा और उनको ईश्वर स्वरूप मानते हैं|सरना धर्म आदिवासी समूह के पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है|सरना धर्म आदिवासी समूह के परम्पराओं,विशवास,सामजिक पहचान,संस्कृतियों को जीवन्त रखने का कार्य करती है|सरना धर्म को मानाने वाले लोग प्रकृति के बीच में रहकर अपनी जीवन शैली को बचाए रखना चाहते हैं|सरना धर्म को मानाने वाले लोग प्राकृतिक नियमों में रह कर अपने जीवन का निर्वहन करने का प्रयास करते हैं,जो कि उनको बाहरी दुनिया से रक्षा करती है|सरना धर्म कोड पर्यावरण और एवं प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित एवं न्याय की बात करता है|
धार्मिक कोड देने की प्रक्रिया-
सविंधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार प्रत्येक नागरिक को अपने अनुसार धर्म को मानने का अधिकार है|भारतीय सविधान के अनुच्छेद-25 के अनुसार छः धार्मिक कोड हैं-हिन्दू धर्म,इस्लाम धर्म,बौध्द धर्म,सिख धर्म,ईसाई धर्म और जैन धर्म|अलग धार्मिक कोड देना राज्य का विषय नहीं है|इसे केवल संसद के दोनों सदनों में पारित कानून के माध्यम से ही लागू किया जा सकता है|
सरना धर्म न केवल धार्मिक विश्वास है बल्कि सरना धर्म आदिवासियों के सामजिक एवं सांस्कृतिक विश्वास को बनाये रखने का कार्य करता है|सरना धर्म आदिवासी समाज की धरोहर को बनाये रखने में मदद करता है|
इसे भी पढ़े –पद्म पुरस्कार वर्ष 2025 के विजेताओं,पद्म पुरस्कार,श्रेणियां –